इसी लिए तो बैठ न पाया इस जीवन से मेल, // तकनीकी बातें जानी पर मन का साथी भूल गए, काँटों से नाते दारी की, कुचल मसल सब फूल गए, टीस भरी है पोर पोर में,रग़ रग़ में अंगारे हैं, लंगड़े दौड़ें जीत रहे हैं पैरों वाले हारे हैं, सच मे मीतों बदल गयी है जीवन की स्केल // सबके अपने अपने हिस्से,सबके अपने प्रश्न यहाँ, अपनी अपनी द्रोपदियां हैं अपने अपने कृष्ण यहाँ, हर कोई अपने ही रण में एकाकी सा जीता है,